भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
आम कुतरते हुए सुए सेइस सुनहरी धूप में मैना कहे मुंडेर कुछ देर बैठा कीजिए |आज मेरे हाथ की अबकी होली में ले आनाभुजिया बीकानेर की ।ये चाय ताजा पीजिए |
गोकुल, वृन्दावन की होभोर में है आपका रूटीन या होली हो बरसाने चिड़ियों कीतरह ,परदेसी की वही पुरानीआप कब रुकतीं ,हमेशा आदत है तरसाने नयी घड़ियों कीतरह ,फूल हँसते हैं सुबह कुछ आप भी हँस लीजिए |
उसकी आँखों को भाती हैदर्द पाँवों में उनींदी आँख कठपुतली आमेर की ।पर उत्साह मन में ,सुबह बच्चों के लिए तुम बैठती -उठती किचन में ,कालबेल कहती बहनजी ढूध तो ले लीजिए |
इस होली में हरे पेड़ कीमेज़ पर अखबार रखती शाख न कोई टूटेबीनती चावल ,मिलें गले से गलेफिर चढ़ाती देवता पर फूल अक्षत -जल , पकड़करहाथ न कोई छूटेपल सुनहरे ,अलबमों के बीच मत रख दीजिए |,हैं कहाँ तुमसे अलग एक्वेरियम की मछलियाँ ,अलग हैं रंगीन पंखों में मगर ये तितलियाँ ,इन्हीं से कुछ रंग ले रंगीन तो हो लीजिए |
हर तुम सजाती घर-आँगन महके ख़ुशबूगुड़हल और कनेर की ।चलो तुमको सजाएँ , चौपालों धुले हाथों पर ढोल मजीरेसुर गूँजे करताल केहरी मेहँदी लगाएं ,रूमालों से छूट न पाएँरंग गुलाबी गाल केचाँद सा मुख ,माथ पर  फगुआ गाएँ या फिर बाँचेंगेकविता शमशेर की ।सूरज उगा तो लीजिए |
</poem>