"अबला-२. गैंग रेप के बाद / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | उदर और नितम्ब को बटोरकर | ||
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+ | हृदयंगम पीडाओं को नाखुनों में | ||
+ | तभी सांस चल पडी अनचाहे | ||
+ | उसका जी मितलाने लगा | ||
+ | उसके गालों पर मर्दाने थूक की बदबुओं से, | ||
+ | जिनसे झकझोर गयीं सारी ज्ञानेन्द्रियां | ||
+ | और सहसा उसके प्राण ने नहीं | ||
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+ | प्रतिशोध ने उसे हिलाया | ||
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+ | वह शर्माई भी नहीं | ||
+ | क्योंकि नहीं था उसके पास | ||
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+ | उसने बेपर्दा हुए अंगों-प्रत्यंगों को देखा | ||
+ | जिनसे लज्जा का नहीं | ||
+ | दर्द का ज्वालामुखी फूट रहा था | ||
+ | कमनीयता की क्षत-विक्षत लाश बस्सा रही थी | ||
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+ | खडी न हो सकने की बेबसी में | ||
+ | वह वापस कांटों पर लेट गयी | ||
+ | और उसकी देह पर | ||
+ | भेडिये दौडने-रपटने लगे | ||
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+ | स्मृतियों पर खौफ़ हावी हो गया | ||
+ | वह वापस अपनी देह में लौट आई | ||
+ | उसने चिथड़ो से | ||
+ | अपनी देह की पुड़िया बनायी | ||
+ | और कुछ देर थाने की ओर लुढ़की | ||
+ | जहां मर्दाने बू ने | ||
+ | उसे वापस घर की ओर उछाल दिया | ||
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+ | ममता ने कलमुही को | ||
+ | बेदखल कर दिया, | ||
+ | वात्सल्य ने उसे | ||
+ | घर की आबरू की वेदी में आहूत कर दिया | ||
+ | भ्रातृत्त्व ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया |
12:33, 21 जून 2010 का अवतरण
गैंग रेप के बाद
उसके आसपास पडी थीं
शराब की बोतलें, फ्राई फिश के कांटें
और चिकेन की चिचोरी गयी हद्दियां
ब्रा और अण्डरवियर के चिथडे
समीज-शलवार की रक्त-रंजित लुगदियां
और उसकी देह और होश के असंख्य हिज्जे
बमुश्किल खुलती पलकों से
बिखरी पडी अंगुलियों को हथेलियों में समेटकर
उदर और नितम्ब को बटोरकर
हिलाते हुए उसने अहसासा
हृदयंगम पीडाओं को नाखुनों में
तभी सांस चल पडी अनचाहे
उसका जी मितलाने लगा
उसके गालों पर मर्दाने थूक की बदबुओं से,
जिनसे झकझोर गयीं सारी ज्ञानेन्द्रियां
और सहसा उसके प्राण ने नहीं
उसके आक्रोश ने उसे उठाया
प्रतिशोध ने उसे हिलाया
वह चींखी नहीं,
बिलखी और बडबडाई नहीं,
घिघिया-रिरियाकर
मदद के लिए
किसी को गुहारी नहीं
क्योंकि उसके पास क्या था अब
बचाने और संजोकर सहेजने के लिए
वह शर्माई भी नहीं
क्योंकि नहीं था उसके पास
कुछ परदे में रखने के लिए
उसने बेपर्दा हुए अंगों-प्रत्यंगों को देखा
जिनसे लज्जा का नहीं
दर्द का ज्वालामुखी फूट रहा था
कमनीयता की क्षत-विक्षत लाश बस्सा रही थी
खडी न हो सकने की बेबसी में
वह वापस कांटों पर लेट गयी
और उसकी देह पर
भेडिये दौडने-रपटने लगे
स्मृतियों पर खौफ़ हावी हो गया
वह वापस अपनी देह में लौट आई
उसने चिथड़ो से
अपनी देह की पुड़िया बनायी
और कुछ देर थाने की ओर लुढ़की
जहां मर्दाने बू ने
उसे वापस घर की ओर उछाल दिया
ममता ने कलमुही को
बेदखल कर दिया,
वात्सल्य ने उसे
घर की आबरू की वेदी में आहूत कर दिया
भ्रातृत्त्व ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया