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अबै नवो नीं / मदन गोपाल लढ़ा

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अबै नवो कोनी सरू करूं कोई काम। जका पोळाया है बै पार पड़ जावै तो घणो ई। कोई कित्ता काम कर सकै अेक जूण में!
सपनां देखणा सोरा है। ताण कांई आवै सपनो देखतां। केई नींद में देखै तो जागती आंख्यां ई रम्योड़ा रैवै सपनां में। पण काम कर्यां ठाह पड़ै। कित्ती-कित्ती अबखाई हुवै कोई काम में। कमी काढणियां तो तक्या खड़्या है, सायरा देवणियां सोध्यां ई नीं लाधै। बियां उम्मेद करणी ई बिरथा है इण जुग में। खुद री ई पार कोनी पड़ै। पारकी संवारणै री तो बात ई बेमानी है।
जका काम पूरा करण री म्हैं मनोमन तेवड़ राखी है, बां सारू अेक जूण कमती लखावै। इण डर संू ई डायरी कोनी मांडूं रोजीनैं। भायलो कैवै- जकी बातां हियै उपजै, बां नैं डायरी में अटका लेवणी चाइजै। इणसूं भूली कोनी पड़ै। कोई जरूरी काम छूटै कोनी। बात भायला री सांची है पण म्हैं तो चावतां थकां ई म्हारै कामां नैं बिसरा कोनी सकूं। रात-दिन अळोच में ई टिपै। जे भायला री बात मान सूची बणावण बैठूं तो कमती पड़ जावैला डायरी रा पानां। फेर अधूरा कामां री गत देख'र जीव कळपैला। जद नीं रैवंूला म्हैं, लोग डायरी रै दाखलै संू कंूतैला- पूरो नीं कर सक्यो मनचावा काम। इण संू चोखो है ताबै आवै क्यूं ई कर्यांं जावूं। जका पूरा हुय जावै बां रो भाग। अधूरा रैय जावै बां रो ग्यान फ गत म्हनैं।
काम संू ओळखीजै कोई मिनख। जूनी रीत है आ, चाम करता प्यारो हुवै काम। जद नीं रैवै चाम, चोखै कामां रो जस अखूट राखै नांव। आज कोई लाख नीं चावै, काम नैं धूड़ खायÓर करणो पड़ै सिलाम।
करणो चावूं काम। अेक जूण में केई जूण रा। पण अबै नवो नीं। जका पोळाया है बै पार पड़ जावै तो घणो ई।