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अब ऐसा घर के दरीचों को बन्द क्या रखना / वसीम बरेलवी

 अब ऐसा घर के दरीचों को बन्द क्या रखना
हवा के आने का कोई तो रास्ता रखना।

तअल्लुक़ात कभी एक से नहीं रहते
उसे गंवा के भी जीने का हौसला रखना

जब अपने लोग ही आएंगे लूटने के लिए
तो दोस्ती का तक़ाज़ा है घर खुला रखना

यह कुरबतें ही बड़े इम्तिहान लेती हैं
किसी से वास्ता रखना तो दूर का रखना

तमाम झगड़े यहां मिल्कियत के होते हैं
कहीं भी रहना मगर घर किराये का रखना

बड़े बड़ों को यहां हाथ तापना होंगे
जले मकानों को कुछ दिन हूँ ही जल रखना

'वसीम' दिल्ली की सड़कों पे रात भारी है
सिरहाने मीर का दीवान ही खुला रखना।