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अब किसी मोड़ पे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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31
सिरा आए हैं
सब नेह के नाते
मीठी वे बातें
जो दिल में बसी थीं
निकलीं सिर्फ धोखा।
32
बरस बीते
पथ में मिल गए
अपने लगे
कल जब वे छूटे
टूटे सपने लगे ।
33
पीर-सी जगी
सुधियाँ वे पुरानी
याद आ गईं
साँझ रूठी आज की
झाँझ- सी बजा गई।
34
मिलना नहीं
अब किसी मोड़ पे
डर है हमें
तुम्हें पाने को बढ़ें
फिर हम सूली चढ़ें।