भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब के ऐसा दौर बना है / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> अब के ऐसा दौर बन...) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=गौतम राजरिशी | |रचनाकार=गौतम राजरिशी | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी |
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
आज तिरा सिरमौर बना है | आज तिरा सिरमौर बना है | ||
− | फिर से | + | फिर से चाँद को रोटी कहकर |
− | + | आँगन में दो कौर बना है | |
बंद न कर दिल के दरवाज़े | बंद न कर दिल के दरवाज़े | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 22: | ||
तेरी-मेरी बात छिड़ी तो | तेरी-मेरी बात छिड़ी तो | ||
− | फिर | + | फिर क़िस्सा कुछ और बना है |
झगड़ा है कैसा आख़िर, जब | झगड़ा है कैसा आख़िर, जब | ||
− | दिल्ली-सा लाहौर बना है | + | दिल्ली-सा लाहौर बना है |
− | + | ||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
+ | (मासिक वर्तमान साहित्य, अगस्त 2009) |
19:19, 10 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
अब के ऐसा दौर बना है
हर ग़म काबिले-गौर बना है
उसके कल की पूछ मुझे, जो
आज तिरा सिरमौर बना है
फिर से चाँद को रोटी कहकर
आँगन में दो कौर बना है
बंद न कर दिल के दरवाज़े
ये हम सब का ठौर बना है
इस्कूलों में आए जवानी
बचपन का ये तौर बना है
तेरी-मेरी बात छिड़ी तो
फिर क़िस्सा कुछ और बना है
झगड़ा है कैसा आख़िर, जब
दिल्ली-सा लाहौर बना है
(मासिक वर्तमान साहित्य, अगस्त 2009)