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अब क्या करता वह क्या करता? / बुल्ले शाह

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अब क्या करता वह क्या करता?
तुम्हीं कहो, दिलबर क्या करता?
एक ही घर में रहतीं बसतीं फिर पर्दा क्या अच्छा,
मस्जिद में पढ़ता नमाज़ वो, पर मन्दिर भी जाता,
एक है वह पर घर लाख अनेक, मालिक वह हर घर का,
चारों ओर प्रभु ही सबके संग नज़र है आता,
मूसा और फरौह को रच के, फिर दो बन क्यों लड़ता?
वह सर्वव्यापी स्वयं साक्षी है, फिर नर्क किसे ले जाता?
बात नाज़ुक है, कैसे कहता, न कह सकता न सह सकता,
कैसा सुन्दर वतन जहाँ एक गढ़ता है एक जलता,
अद्वैत और सत्य-सरिता में सब कोई दिखता तरता,
वही इस ओर, वही उस ओर, मालिक और दास वही सबका,
व्याघ्र-सम प्रेम है बुल्ले शाह का, जो पीता है रक्त और मांस है खाता।


मूल पंजाबी पाठ

की करदा हुण की करदा,
तुसी कहो खाँ दिलबर की करदा।
इकसे घर विच वसदियाँ रसदियाँ नहीं बणदा हुण पर्दा,
विच मसीत नमाज़ गुज़ारे बुत-ख़ाने जा सजदा,
आप इक्को कई लख घाराँ दे मालक है घर-घर दा,
जित वल वेखाँ तित वल तूं ही हर इक दा संग करदा,
मूसा ते फिरौन बणा के दो हो कियों कर लड़दा,
हाज़र नाज़र खुद नवीस है दोज़ख किस नूं खड़दा,
नाज़क बात है कियों कहंदा ना कह सक्दा ना जर्दा,
वाह वाह वतन कहींदा एहो इक दबींदा इक सड़दा,
वाहदत दा दरीयायो सचव, उथे दिस्से सभ को तरदा,
इत वल आपे उत वल आपे, आपे साहिब आपे बरदा,
बुल्ला शाह दा इश्क़ बघेला, रत पींदा गोशत चरदा।