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अब जा के जिन्दगी को समझने लगा हूँ मैं / मोहम्मद इरशाद
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अब जा के ज़िन्दगी को समझने लगा हूँ मैं
जब पेचोख़म में इसके उलझने लगा हूँ मैं
पहले ख़ुशी ही रास थी अब हूँ ग़मों में ख़ुश
उनका ख़याल है कि बदलने लगा हूँ मैं
एहसास मेरा आज भी ज़िन्दा है देखिये
तुम धूप में जले तो पिघलने लगा हूँ मैं
तेरी वजह से दुनिया मे मेरा भी है वजूद
किरदार से ही अपने निखरने लगा हूँ मैं
दुनिया के साथ चलके भटकता था रात-दिन
राहे-वफा पे चलके सँभलने लगा हूँ मैं
‘इरशाद’ मुझको आके ज़रा फिर से समेट ले
यूँ तिनका-तिनका देख बिखरने लगा हूँ मैं