अब जी रहा हूँ गर्दिश-ए-दौराँ के साथ-साथ
ये नागवार फ़र्ज़ अदा कर रहा हूँ मैं
ऐ रब्ब-ए-ज़ुल-जलाल तिरी बरतरी की ख़ैर
अब ज़ालिमों की मद्ह-ओ-सना कर रहा हूँ मैं
‘षोरिष’ मेरी नवा से ख़फ़ा है फ़क़ीह-ए-शहर
लेकिन जो कर रहा हूँ बजा कर रहा हूँ मैं
अब जी रहा हूँ गर्दिश-ए-दौराँ के साथ-साथ
ये नागवार फ़र्ज़ अदा कर रहा हूँ मैं
ऐ रब्ब-ए-ज़ुल-जलाल तिरी बरतरी की ख़ैर
अब ज़ालिमों की मद्ह-ओ-सना कर रहा हूँ मैं
‘षोरिष’ मेरी नवा से ख़फ़ा है फ़क़ीह-ए-शहर
लेकिन जो कर रहा हूँ बजा कर रहा हूँ मैं