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अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर / कैफ़ी आज़मी

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अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुये गेसू नहीं देखे जाते
सुर्ख़ आँखों की क़सम काँपती पलकों की क़सम
थर-थराते हुये आँसू नहीं देखे जाते

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर<ref>सपनों का आलिंगन</ref> में भी आया न करो
छूट जाने दो जो दामन-ए-वफ़ा छूट गया
क्यूँ ये लग़ज़ीदा ख़रामी<ref>सोच-सोच के चलना </ref>ये पशेमाँ नज़री<ref>पछतावे से भरी निगाह</ref>
तुम ने तोड़ा नहीं रिश्ता-ए-दिल टूट गया

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मेरी आहों से ये रुख़सार<ref>गाल </ref> न कुम्हला जायें
ढूँढती होगी तुम्हें रस में नहाई हुई रात
जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुरझा जायें

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मैं इस उजड़े हुये पहलू में बिठा लूँ न कहीं
लब-ए-शीरीं<ref>मधुर होंठ</ref> का नमक आरिज़-ए-नमकीं<ref>नमकीन गाल </ref>की मिठास
अपने तरसे हुये होंठों में चुरा लूँ न कहीं

शब्दार्थ
<references/>