भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब तुम नौका लेकर आये / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:13, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= नाव सिन्धु में छोड़ी / ग…)
अब तुम नौका लेकर आये
जब लहरों में बहते-बहते हम तट से टकराये!
जब सब और अतल सागर था
सतत डूब जाने का डर था
तब जाने यह प्रेम किधर था
ये उच्छ् वास छिपाये!
अब जब सम्मुख ठोस धरा है
छूट चुका सागर गहरा है
मिला निमंत्रण स्नेहभरा है--
'लो, हम नौका लाये'
क्या यह नाव लिए निज सिर पर
नाचें हम अब थिरक-थिरककर!
धन्यवाद दें तुम्हें, बंधुवर!
दोनों हाथ उठाये!
अब तुम नौका लेकर आये
जब लहरों में बहते-बहते हम तट से टकराये!