भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब तो उसकी दीद को भी एक ज़माना हो गया / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब तो उसकी दीद को भी एक ज़माना हो गया ।
बनते बनते वाक़या भी एक फ़साना हो गया ।।

हम गए तो थे पर उनका दर नहीं हम पर खुला
यूँ समझिए इस बहाने आना-जाना हो गया ।

जी को लगता था कि रोना तो बड़ा आसान है
रोए तो आँखों के रस्ते खूँ बहाना हो गया ।

हम अभी ज़िन्दा है मरने की कोई सूरत नहीं
क्यूँ लगा दुनिया में अपना आबो-दाना हो गया ।

हम कहें और वो न माने फिर कहें फिर-फिर कहें
ये तो अपने हाल पर जग को हँसाना हो गया ।

एक तरफ़ दस्ते-सितम है एक तरफ़ दीवानगी
दिल हमारा चाँदमारी का निशाना हो गया ।

एक हद के बाद रोने का कोई मतलब नहीं
सोज़ अब बस भी करो रोना-रुलाना हो गया ।।

23 जनवरी 2015