Last modified on 11 मार्च 2014, at 12:08

अब तो मुझे / गोपालदास "नीरज"

अब तो मुझे न और रुलाओ!

रोते-रोते आँखें सूखीं,
हृदय-कमल की पाँखें सूखीं,
मेरे मरु-से जीवन में तुम मत अब सरस सुधा बरसाओ!
अब तो मुझे न और रुलाओ!

मुझे न जीवन की अभिलाषा,
मुझे न तुमसे कुछ भी आशा,
मेरी इन तन्द्रिल पलकों पर मत स्वप्निल संसार सजाओ!
अब तो मुझे न और रुलाओ!

अब नयनों में तम-सी काली,
झलक रही मदिरा की लाली,
जीवन की संध्या आई है, मत आशा के दीप जलाओ!
अब तो मुझे न और रुलाओ!