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अब दिल बुझा बुझा है, मुझे मार दीजिए / अर्पित शर्मा 'अर्पित'

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अब दिल बुझा बुझा है, मुझे मार दीजिए
जीने में क्या रखा है, मुझे मार दीजिए

दिल के मरज़ का अब नहीं दुनिया में कुछ इलाज,
ये इश्क़ ला दवा है, मुझे मार दीजिए

मैं बे-गुनाह हूँ तो यही है मेरी सज़ा,
ये फ़ैसला हुआ है, मुझे मार दीजिए

डरता हूँ आईने को लगाने से हाथ मैं
कहता ये आईना है, मुझे मार दीजिए

मैं हूँ वफ़ा शिआर यहाँ जी के क्या करूँ
ये दौर-ए-बेवफ़ा है, मुझे मार दीजिए

वल्लाह बे नशा न रही मेरी कोई शाम,
उखड़ा हुआ नशा है, मुझे मार दीजिए

ए जाने दिल बहार तेरी बेरुख़ी के बाद
अब मेरे पास क्या है, मुझे मार दीजिए

तन्हाइयों की क़ैद से घबरा के एक शख़्स
आवाज़ दे रहा है, मुझे मार दीजिए

एक बात जोश-जोश में सच कह गया हूँ मैं
तुमको बुरा लगा है, मुझे मार दीजिए

तन्हाई मेरी उससे भी देखी नहीं गई,
उसने भी ये कहा है, मुझे मार दीजिए

रश्के चमन बना है ये "अर्पित" मेरा वजूद
ख़ुश्बू को छू लिया है मुझे मार दीजिए