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|संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर
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{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>अब नहीं मेरे गगन पर<br>चाँद निकलेगा !<br><br>
बीत जाएगी तुम्हारी याद में सारी उमर<br>पार करनी है अँधेरी और एकाकी डगर ; <br> :किस तरह अवसन्न जीवन<br>:बोझ सँभलेगा !<br><br>
शांत, बेबस, मूक, निष्फल खो उमंगों को हृदय<br>चिर उदासी मग्न, निर्धन, खो तरंगों को हृदय<br><br>:: :अब नहीं जीवन-जलधि में<br>:ज्वार मचलेगा !<br><br>
नेह रंजित, हर्ष पूरित, इंद्रधनुषी फाग को<br>उपवनों में गूँजते रस-सिक्त पंचम-राग को<br>:क्या पता था, इस तरह<br>:प्रारब्ध निगलेगा ! <br><br/poem>
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