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अब भी मेरा प्यार उन अमराइयों में / अमरेन्द्र

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अब भी मेरा प्यार उन अमराइयों में
पिक के ही पंचम सुरों में गा रहा है।

मंजरी पर पाँव रखता है थिरक कर
और छुप जाता कभी पीछे सरक कर
पल्लवों की ओट में बैठा निहारे
आज भी पल-पल उसी तरह पुकारे
जिन्दगी की शेष घड़ियाँ थाह रहा है ।

बौर के रस-स्रोत पर जा कर तिरे फिर
तितलियों के पँख पर उड़ता फिरे फिर
आज भी है रूप की, रस-गन्ध-चाहत
पँखुड़ी की धार से वह अब भी आहत
पवन की वंशी बजाए जा रहा है।

केश उलझे, नयन जड़वत्, चित्त चंचल
उस नयन में स्वप्न की सौ अथक हलचल
साँसों की वायु से उड़ता रूई का तन
अब भी मेरा प्यार ढूँढे शिशिर-सावन
पाँवों में फागुन धरे उमता रहा है।