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"अब मत मेरा निर्माण करो / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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युग-युग बीते, मैं न घबराया;
 
युग-युग बीते, मैं न घबराया;
  
भूलो मेरी विह्वलता को, निज लज्‍जा का तो ध्‍यान करो!
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भूलो मेरी विह्वलता को, निज लज्जा का तो ध्यान करो!
  
 
अब मत मेरा निर्माण करो!
 
अब मत मेरा निर्माण करो!
  
  
इस चक्‍की पर खाते चक्‍कर
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इस चक्की पर खाते चक्कर
  
 
मेरा तन-मन-जीवन जर्जर,
 
मेरा तन-मन-जीवन जर्जर,

02:48, 30 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

अब मत मेरा निर्माण करो!


तुमने न बना मुझको पाया,

युग-युग बीते, मैं न घबराया;

भूलो मेरी विह्वलता को, निज लज्जा का तो ध्यान करो!

अब मत मेरा निर्माण करो!


इस चक्की पर खाते चक्कर

मेरा तन-मन-जीवन जर्जर,

हे कुंभकार, मेरी मिट्टी को और न अब हैरान करो!

अब मत मेरा निर्माण करो!


कहने की सीमा होती है,

सहने की सीमा होती है;

कुछ मेरे भी वश में, मेरा कुछ सोच-समझ अपमान करो!

अब मत मेरा निर्माण करो!