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अब मैं हार्यौ रे भाई / रैदास

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कवि: रैदास


अब मैं हार्यौ रे भाई।

थकित भयौ सब हाल चाल थैं, लोग न बेद बड़ाई।। टेक।।

थकित भयौ गाइण अरु नाचण, थाकी सेवा पूजा।

काम क्रोध थैं देह थकित भई, कहूँ कहाँ लूँ दूजा।।१।।

रांम जन होउ न भगत कहाँऊँ, चरन पखालूँ न देवा।

जोई-जोई करौ उलटि मोहि बाधै, ताथैं निकटि न भेवा।।२।।

पहली ग्यांन का कीया चांदिणां, पीछैं दीया बुझाई।

सुनि सहज मैं दोऊ त्यागे, राम कहूँ न खुदाई।।३।।

दूरि बसै षट क्रम सकल अरु, दूरिब कीन्हे सेऊ।

ग्यान ध्यानं दोऊ दूरि कीन्हे, दूरिब छाड़े तेऊ।।४।।

पंचू थकित भये जहाँ-तहाँ, जहाँ-तहाँ थिति पाई।

जा करनि मैं दौर्यौ फिरतौ, सो अब घट मैं पाई।।५।।

पंचू मेरी सखी सहेली, तिनि निधि दई दिखाई।

अब मन फूलि भयौ जग महियां, उलटि आप मैं समाई।।६।।

चलत चलत मेरौ निज मन थाक्यौ, अब मोपैं चल्यौ न जाई।

सांई सहजि मिल्यौ सोई सनमुख, कहै रैदास बताई।।७।।