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"अब लोगों को कौन बताए क्या सच है / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर

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सर से पा तक दर्द पहन कर बैठे हैं
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अब लोगों को कौन बताए क्या सच है
नाकामी की गर्द पहन कर बैठे हैं
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सब की आंखों के आगे धुंधला सच है
  
ख़ुशहाली के जो  वादे  भेजे तुमने
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कोई भी तैयार नहीं है पीने को
घर के सारे फ़र्द पहन कर बैठे हैं
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वक़्त के हाथों में इतना कड़वा सच है
  
हरियाली के ख़्वाब में डूबे सारे पेड़
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जेसै भी हो हज़्म तुझे करना होगा
तन पर कपड़े ज़र्द पहन कर बैठे हैं
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मेरे बेटे ये तेरा पहला सच है
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अपनी आंखें धोका भी खा सकती हैं
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झूट ने सर से पावं तलक पहना सच है
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हाथ क़लम होने के बाद में सोचेंगे
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यार अभी जो लिखना है लिखना सच है
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झूट लिखेंगे हम तो क़लम की है तौहीन
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हम को अपनी ग़ज़लों में लिखना सच है
  
अगले सीन की तैयारी में सब किरदार
 
अफ़साने का दर्द पहन कर बैठे हैं
 
  
लहजे में गर्माहट और जज़्बों में
 
हम सब मौसम सर्द पहन कर बैठे हैं
 
  
 
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05:13, 18 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण

अब लोगों को कौन बताए क्या सच है
सब की आंखों के आगे धुंधला सच है

कोई भी तैयार नहीं है पीने को
वक़्त के हाथों में इतना कड़वा सच है

जेसै भी हो हज़्म तुझे करना होगा
मेरे बेटे ये तेरा पहला सच है

अपनी आंखें धोका भी खा सकती हैं
झूट ने सर से पावं तलक पहना सच है

हाथ क़लम होने के बाद में सोचेंगे
यार अभी जो लिखना है लिखना सच है

झूट लिखेंगे हम तो क़लम की है तौहीन
हम को अपनी ग़ज़लों में लिखना सच है