भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब वक़्त जो आने वाला है किस तरह गुज़रने वाला है / शहरयार

Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:41, 26 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |संग्रह=सैरे-जहाँ / शहरयार }} {{KKCatKavita}} <poem> अब व…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब वक़्त जो आने वाला है किस तरह गुजरनेवाला है
वो शक्ल तो कब से ओझल है ये ज़ख़्म भी भरनेवाला है

दुनिया से बग़ावत करने की उस शख़्स से उम्मीदें कैसी
दुनिया के लिए जो ज़िन्दा है दुनिया से जो डरने वाला है

आदम की तरह आदम से मिले कुछ अच्छे-सच्चे काम करे
ये इल्म अगर हो इंसाँ को कब कैसे मरने वाला है

दरिया के किनारे पर इतनी ये भीड़ यही सुनकर आई
इक चाँद बिना पैरहन के पानी में उतरने वाला है