अब हमें गम को भुलाना आ गया।
अश्क़ पी कर मुस्कुराना आ गया॥
जब दुखी थे तब अकेले ही रहे
साथ अब सारा जमाना आ गया॥
तैरना आता नहीं मझधार में
जब पड़े चप्पू चलाना आ गया॥
साथ देते सब सदा धनवान का
रंक से पीछा छुड़ाना आ गया॥
डगमगाती कश्तियाँ तूफ़ान में
पार है हमको लगाना आ गया॥
झूठ कह कर ही बनाते काम सब
सत्य से नजरें चुराना आ गया॥
वह मिले कुछ इस तरह जागे हुए
नैन में सपना सुहाना आ गया॥