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अब हम गीत नहीं गाते हैं / कुमार रवींद्र

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धूप-छाँव के
अब हम गीत नहीं गाते हैं
 
महानगर की इस बस्ती में
बंद खिड़कियाँ-दरवाजे हैं
बड़े बेसुरे
अंधे राजा के घर में
बजते बाजे हैं
 
गूँज उन्हीं की
गली-गली में हम पाते हैं

मीनारों के घेरे में
बस सूरज के साये होते हैं
राजभवन के घने उजाले
घर-घर
अँधियारे बोते हैं
 
सडक-दर-सडक
भटक-भटक हम बौराते हैं
 
पोथी में हम
फूलों का इतिहास बाँचते
वहीं पुरानी पगडंडी के
लिखे हैं पते
 
सपनों में हम
उन्हें देखकर मुँह बाते हैं