भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभागिन भुइयाँ / लाला जगदलपुरी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:43, 19 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाला जगदलपुरी }} {{KKCatGhazal}} {{KKCatChhattisgarhiRachna}} <...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तैं हर झन खिसिया, मोर अभागिन भुइयाँ
निचट लहुटही दिन तोर अभागिन भुइयाँ।
मुँह जर जाही अँधियारी परलोकहिन के
मन ले माँग ले अँजोर अभागिन भुइयाँ।
पहाड़-कस रतिहा बैरी गरुआगे हे
बन जा तहूँ अब कठोर अभागिन भुइयाँ।
कखरो मन ला नइ टोरे तैं बनिहारिन
अपनो मन ला झन टोर अभागिन भुइयाँ।
आ गे हवे नवाँ जुग बदले के बेरा
नवाँ बिहान ला अगोर अभागिन भुइयाँ।