Last modified on 1 दिसम्बर 2010, at 21:45

अभिनन्दन / बुलाकी दास बावरा

जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन ।
प्रेरित-ज्योति, नूतन साधन ।।

भोर हृदय उन्माद छिपा
मृग ठुमक ठुमक डग धरता
ऊषा की लाली को लेकर,
अंधकार को हरता
द्रुम-दल-पल्लव में स्पंदन।
जीवन पर्व, प्रिये! अभिनन्दन

बीते पतझर में बसन्त
पुनि, लाया पावन बेला,
महक उठा मधुवासिन का घर
कोई नहीं अकेला
खोया-खोया, नभ का क्रन्दन।
जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन

पुनर्मिलन प्रिय ! पुलिकित अम्बर,
शत-शत रंगी चादर ताने,
उर्मिल-आभा से रंजित भू-
प्रीति-स्वरों के बैठ सिराने
टूटे-टूटे, लगते बन्धन।
जीवन पर्व, प्रिये! अभिनन्दन

जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन।
प्रेरित ज्योति, नूतन साधन।।