भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभिमत बदलते हैं / इसाक अश्क

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:59, 4 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इसाक अश्क }} {{KKCatNavgeet}} <poem> रंग गिरगिट की तरह अभिमत बद…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रंग
गिरगिट की तरह
अभिमत बदलते हैं ।

रोज़
करते हैं तरफ़दारी
अंधेरों की
रोशनी को
लूटने वाले
लुटेरों की

इसमें
नहीं होते सफल तो
हाथ मलते हैं ।

अवसरों की
हुण्डियाँ बढ़कर
भुनाने की
जानते हैं हम
कला झुकने
झुकाने की

यश
मिले इसके लिए हर
चाल चलते हैं ।