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अभिमान किया जिसने / मनोज मानव

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अभिमान किया जिसने दुनियाँ उसका करती गुणगान नहीं।
वह जीवन-जीवन क्या जिसकी जग में अपनी पहचान नहीं।

तब लाज नहीं हमको लगती जब शौच खुले हम हैं करते,
यह भारत साफ रहे अपना इसका रखते हम ध्यान नहीं।

बिटिया अपनी कहती सड़कों पर दूभर आज हुआ चलना,
लड़के कुछ देख कसे फबती करते हम मूल निदान नहीं।

जिसकी लगती जब घात तभी वह लूट रहा जन के धन को,
इस हेतु सहर्ष शहीद यहाँ निज प्राण किये बलिदान नहीं।

यह ज्ञान मिला अनमोल हमें कुछ दान करो हँसते-हँसते,
निज रक्त करें हम दान सदा इससे बढ़ के कुछ दान नहीं।

वह मानव-मानव क्या जिसके हिय प्रीति बसे न बसे ममता,
दुख देख नहीं तड़पा जन जो उसका जग में कुछ मान नहीं।

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आधार छन्द-दुर्मिळ सवैया (24 वर्णिक)
सुगम मापनी-ललगा 8
पारम्परिक सूत्र-स 8