Last modified on 16 जून 2019, at 18:30

अभिमान / दीनदयाल गिरि

करनी जम्बुक जून ज्यों गरजन सिंह समान ।
क्यों न डरै जग लखि तुमै अहो बोर अभिमान ।।

अहो बोर अभिमान धरा को धीर धरैगो ।
कोप न करो प्रचण्ड सबै ब्रह्मण्ड जरैगो ।।

बनै दीनदयाल बहै विधि गुरुगम गुनिये ।
जातैं होय प्रबोध उदय सो सम्मत सुनिये ।। ५२।।