भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभिमान / दीनदयाल गिरि

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:30, 16 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल गिरि |अनुवादक= |संग्रह=अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करनी जम्बुक जून ज्यों गरजन सिंह समान ।
क्यों न डरै जग लखि तुमै अहो बोर अभिमान ।।

अहो बोर अभिमान धरा को धीर धरैगो ।
कोप न करो प्रचण्ड सबै ब्रह्मण्ड जरैगो ।।

बनै दीनदयाल बहै विधि गुरुगम गुनिये ।
जातैं होय प्रबोध उदय सो सम्मत सुनिये ।। ५२।।