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अभिशाप / कल्पना लालजी

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कौन जाने काँटों ने किया कौन सा पाप
क्योंकर सहते जीवन भर वे ऐसा अभिशाप
पथरीली राहों में जन्में प्रेम कभी न पाते
तरसें बूंद-बूंद को देखो प्यासे ही मर जाते

पहले जन्मों का शायद वे भुगत रहे हैं शाप
लिखा भाग्य में उनकी तो नफरत सदा ही पाते
लहूलुहान होते तन जब आपस में टकराते
चिलचिलाती धूप में भी जलते आप ही आप
नहीं किसी का साथ उनको कैसी किस्मत की रेखा
चैन नहीं पल भर का भी कभी उन्होंने देखा
जाने कितने और जन्म लिखा यही संताप
रेतीला बिस्तर उनका मिली कभी न छाया

इन्द्रधनुष बरसातें लेकर नहीं कभी क्यों सहते चुपचाप
समझाए कोई उनको इंतज़ार है किसका
इस निष्ठुर संसार में नहीं कोई भी उनका
किस मासूमियत से देखो वे सुनते हैं पदचाप
कौन जाने काँटों ने किया कौन सा पाप
क्योंकर सहते जीवन भर वे ऐसा अभिशाप