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अभी-अभी हटी है / नागार्जुन

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अभी-अभी हटी है

मुसीबत के काले बादलों की छाया

अभी-अभी आ गयी--

रिझाने, दमित इच्छाओं की रंगीन माया

लगता है कि अभी-अभी

ज़रा-सी गफ़लत में होगा चौपट किया-कराया


ठिकाने तलाश रही है चाटुकारों की भीड़

शंख फूँकने लगे नये-नये कुवलयापीड़

फिर से पहचान लो, वाद्यवृन्दों में पुरानी गमक और मीड़

दिखाई दे गये हैं गीध के शावकों को अपने नीड़

(1977 में रचित)