भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभी तो ख़त नहीं ठण्डे पड़े जलाए हुए / पूजा बंसल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 19 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूजा बंसल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अभी तो ख़त नहीं ठण्डे पड़े जलाए हुए
वो कह रहे हैं ज़माना हुआ सताए हुए

बहुत सी नेकियाँ करके मैं भूल बैठी हूँ
करूँ भी ख़र्च कहाँ सिक्कें ये कमाए हुए

कसक ये रुक के कई बार दिल में उठती है
अभी तलक रहे ज़िंदा उन्हें भुलाए हुए

ज़रा सी दूरियों का डर हमें सताता है
तुम्हें नक़द में लिया है या हो चुराए हुए

हज़ार उम्र से गुज़रे हैं हिज्र के लम्हें
हैं इंतज़ार गुज़ारिश को हम कराए हुए

हमारे खेल के साथी न रूठ जायें कहीं
तो ख़ुद के दाँव में पाँसे लिए मिटाए हुए

अगर हो इश्क़ तो तकमील ए इबादत की हद
दिए हैं पीरों ने नुस्ख़ें ये आज़माए हुए

छलक न जाए ये आँखों से सामने सबके
रखे हैं दिल में ही जज़्बात जो सुखाए हुए