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अभी तो वक़्त का काफ़ी हिसाब बाक़ी है / कैलाश मनहर

अभी तो वक़्त का काफ़ी हिसाब बाक़ी है ।
हमें जो पढ़नी है असली किताब बाक़ी है ।

इन्हें सम्भाल कर रखूँगा ग़ुम न जाएँ कहीं,
ख़राबियाँ जो अब देंगी ख़िताब बाक़ी है ।

तेरा गुरूर भी तोड़ेगी आबरू मेरी,
अभी तो आख़िरी जाम-ए-शराब बाक़ी है I

अभी गिरफ़्त में है मुल्क़ तानाशाही की,
कितना जाने अभी ख़ाना ख़राब बाक़ी है ।

तमाम उम्र तेरे जुल्म सहे हैं मैंने,
याद रखना अभी मेरा जवाब बाक़ी है ।

तेरे माफ़िक हैं हवाएँ अभी सही है मगर,
दिलों में मचल रहा इन्क़लाब बाक़ी है ।