भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अमरनाथ साहिर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
()
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
+
{{KKParichay
|रचनाकार=अमरनाथ साहिर  
+
|चित्र=
 +
|नाम=अमरनाथ साहिर
 +
|उपनाम=
 +
|जन्म=
 +
|जन्मस्थान= 
 +
|कृतियाँ=   
 +
|विविध=
 +
|अंग्रेज़ीनाम=amaranath sahir saheer amaranaath
 +
|जीवनी=[[अमरनाथ साहिर / परिचय]]
 
}}
 
}}
'''कुछ फुटकर शे’र'''
 
  
होने को तो है अब भी वही हुस्न, वही इश्क़।
+
* '''[[कुछ फुटकर शे’र / अमरनाथ साहिर]]'''
 
+
जो हर्फ़े-ग़लत होके मिटा नक़्शे-वफ़ा था॥
+
 
+
 
+
पिन्हाँ नज़र से पर्द-ए-दिल में रहा वोह शोख़।
+
 
+
क्या इम्तयाज़ हो मुझे हिज्रो-विसाल का॥
+
 
+
 
+
ऐ परीरू! तेरे दीवाने का ईमाँ क्या है।
+
 
+
इक निगाहे-ग़लत अन्दाज़ पै क़ुर्बां होना॥
+
 
+
 
+
 
+
जुनूने इश्क़ में कब तन-बदन का होश रहता है।
+
 
+
बढ़ा जब जोशे-सौदा हमने सर को दर्दे-सर जाना॥
+
 
+
 
+
एक जज़्बा था अज़ल से गोशये-दिल में निहाँ।
+
 
+
इश्क़ को इस हुस्न के बाज़ार ने रुसवा किया॥
+
 
+
 
+
तमन्नाएं बर आई अपनी तर्केमुद्दआ होकर।
+
 
+
हुआ दिल बेमतमन्ना अब, रहा मतलब से क्या मतलब॥
+
 
+
 
+
देखकर आईना कहते हैं कि - "लासानी हूँ मैं"।
+
 
+
आईना देता है उनकी लनतरानी का जवाब॥
+
 
+
 
+
पा लिया आपको अब कोई तमन्ना न रही।
+
 
+
बेतलब मुझको जो मिलना था मिला आपसे आप॥
+
 
+
 
+
गुम कर दिया है आलमे-हस्ती में होश को।
+
 
+
हर इक से पूछता हूँ कि ‘साहिर’ कहाँ है आज।
+
 
+
 
+
दामाने-यार मरके भी छूटा न हाथ से।
+
 
+
उट्ठे हैं ख़ाक होके सरे रहगुज़र से हम॥
+
 
+
 
+
सदा-ए-वस्ल बामे-अर्श से आती है कानों में--।
+
 
+
"मुहब्बत के मज़े इस दार पर चढ़कर निकलते हैं"||
+
 
+
 
+
क़तरा दरिया है अगर अपनी हक़ीक़त जाने।
+
 
+
खोये जाते हैं जो हम आपको पा जाते हैं॥
+
 
+
 
+
कहाँ दैरो-हरम में जलवये-साकी़-ओ-मय बाक़ी?
+
 
+
चलें मयख़ाने में और बैअ़ते-पीरेमुग़ाँ कर लें॥
+
 
+
 
+
परेपरवाज़ उनका लायेंगे गर ला-मकाँ भी हो।
+
 
+
तुम्हें हम ढूँढ़ लायेंगे कहीं भी हो, जहाँ भी हो॥
+
 
+
 
+
हुस्न क्या हुस्न है जल्वा जिसे दरकार न हो।
+
 
+
यूसफ़ी क्या है जो हंगाम-ए-बाज़ार न हो॥
+
 
+
 
+
बेतमन्नाई ने बरहम रंगे-महफ़िल कर दिया।
+
 
+
दिल की बज़्म-आराइयाँ थीं आरज़ू-ए-दिल के साथ॥
+
 
+
 
+
अज़ल से दिल है महवेनाज़ वक़्फ़े-ख़ुद-फ़रामोशी।
+
 
+
जो बेख़ुद हो वोह क्या जाने, वफ़ा क्या है, जफ़ा क्या है?
+
 
+
 
+
परदा पडा़ हुआ था गफ़लत का चश्मे-दिल पर।
+
 
+
आँखें खुलीं तो देखा आलम में तू-ही-तू है॥
+
 
+
 
+
जलव-ए-हक़ नज़र आता है सनम में ‘साहिर’।
+
 
+
है मेरे काबे की तामीर सनम-ख़ानों से॥
+
 
+
 
+
हुस्न में और इश्क़ में जब राब्ता क़ायम हुआ।
+
 
+
ग़म बना दिल के लिए और दिल बना मेरे लिए॥
+
 
+
 
+
वो भी आलम था कि तू-ही-था और कोई न था।
+
 
+
अब यह कैफ़ियत है मैं-ही-मैं का है सौदा मुझे॥
+
 
+
 
+
हुस्न को इश्क़ से बेपरदा बना देते हैं वोह।
+
 
+
वोह जो पिन्दारे-खुदी दिल से मिटा देते हैं॥
+
 
+
 
+
खाली हाथ आएंगे और जाएंगे भी खाली हाथ।
+
 
+
मुफ़्त की सर है, क्या लेते हैं, क्या देते हैं।
+
 
+
 
+
ज़िंदगी में है मौत का नक्शा।
+
 
+
जिसको हम इन्तज़ार कहते हैं॥
+
 
+
 
+
दीदारे-शीशजहत<ref>विश्व के दर्शन</ref> है कोई दीदावर तो हो।
+
 
+
जलवा कहाँ नहीं, कोई अहले-नज़र तो हो॥
+
 
+
 
+
हरम है मोमिनों का, बुतपरस्तों का सनमख़ाना।
+
 
+
ख़ुदा-साज़ इक इमारत है मेरे पहलू में जो दिल है॥
+
 
+
 
+
चले जो होश से हम बेखुदी की मंज़िल में।
+
 
+
मिला वो ज़ौके-नज़र, पर उधर न देख सके॥
+
 
+
 
+
हम है और बेखुदी-ओ-बेख़बरी।
+
 
+
अब न रिन्दी न पारसाई है॥
+
 
+
{{KKMeaning}}
+

18:30, 13 जुलाई 2009 का अवतरण

अमरनाथ साहिर
Photo-not-available-cam-kavitakosh.png
क्या आपके पास चित्र उपलब्ध है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें

जन्म
निधन
उपनाम
जन्म स्थान
कुछ प्रमुख कृतियाँ
विविध
जीवन परिचय
अमरनाथ साहिर / परिचय
कविता कोश पता
www.kavitakosh.org/{{{shorturl}}}