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अमानवीयता के इस दौर में / अनिता भारती

यह अमानवीयता को दौर है
मानवीय होने की
कोशिश मत करना
अनैतिकता के खिलाफ
बोलोगे तो
तो तांक-झांक करने के आरोप में
सरे राह मार गिरा दिेए जाने की
साजिश रची जाएगी
हक न्याय के लिए खड़े होने पर
जड़ से नेस्तानाबूत कर दिए जाओगे
क्या अजीब दौर है
कि अमानवीयता का दौर
खत्म ही नही होता!

पैसा, प्यार, देह, मद
शक्ति और जनहित का
रात-दिन चल रहा व्यापार है
अहम टकराते हैं जामों की तरह
खुद्दारी टपक पड़ती है
लालची कुत्ते की लार की तरह
आँखों में पॉवर का नशा
हज़ार वॉल्ट के
सीएफएल बल्व की तरह
चुभता है
नग्न उद्दीप्त बाँहें तड़पती है
सब कुछ कुचलने को
क्या तुम कुचलने को तैयार हो?
अगर नहीं तो तुम्हे
खून के आँसू रुलाये जाएँगे
तुम्हारे मन का जल्लाद
चिल्ला-चिल्लाकर बोलेगा कि तुम
मर चुकी हो, मर चुकी हो तुम...

क्या तुम सचमुच मर चुकी हो?
क्या तुम वाकई मर जाओगी?
दरअसल वे तुम्हे मारते-मारते
इंसा से आँसुओं की लाश में
बदल देना चाहते हैं
क्या तुम आँसुओं की लाश में
बदलने को तैयार हो?
पीठ में खंजर घुसेड़कर
मारे गये अम्बेडकर, बुद्ध
और कार्ल मार्क्स को
तुम्हारे ऊपर कफ़न की तरह ओढ़ाकर
तुम्हे शांत करना चाहते हैं
अदालत में फैसले
खटाखट हो रहे हैं
रुपया नंगा खड़ा हो
लोकतंत्री ताल पर नाच रहा है
रिश्तों, सरोकारों की बदनुमाइश में
वह जीत रहा है
और खालिस इंसान मर रहा है

बोलो, तुम्हारी तड़प की
कीमत क्या है?
लड़ो-लड़ो, नहीं मरो-मरो
का गान चल रहा है
जीवन का मधुर गान
बंदूक की कर्कश धांय-धांय सुना रहा है
चलो चलो जल्दी चलो
चलो चलो कि जल्दी लड़ो
कि अब मत कहो कि
यह अमानवीयता का दौर है
मानवीयता की बात मत करो।