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अमिर्त / हरेकृष्ण झा

 
कइएक आसिनसँ अबैत अछि आवाज
धानत खेतसँ: अमिर्त, अमिर्त,
भ’ जाउ बिर्त;
मुदा एहि बेर अनघोल भेल अछि,
इजोतक किलोक भेल अछि।

कतहु छाप-छिप
त’ कतहु ठेहुन भरि पानि होएत
बाधमे,
बीटक बीच-बीचमे छाप होएत
जनक तरबाक
ताप मेटबैत साल भरिक,
ओकर अंकमे होएताह चन्द्रमा
ऐनमेन चनरमा जकाँ,
हुनक अंकमे हुलबुल
करैत होएत माछक चिलका सभ
गोल बन्हि क’।

आकाश नेहाल,
बसात नेहाल,
ओसाक सम्पति नेहाल, चन्द्रमा किर्तकिर्त,
धरती जनक संगतिमे
अमृतक लेल बिर्त
कइएक आसिनसँ अबैत अछि आवाज:
अमिर्त, अमिर्त, भेल रहू बिर्त;
मुदा एहि बेर
अनघोल भेल अछि,
इजोतक किलोल भेल अछि:
मिसाइलक अन्तहीन निसाफक बीच,
अताइ सभक स्थाई आजादीक बीच।