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अमूहा / बैगा

बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

री रीना री रीना अमूहा री रीना री रीना अमूहा।
कौन से बोवय न अमूहा।
बैगा सा बोवय न अमूहा।
बैगा सा बोवय न अमूहा न।
अमाना लागय न अमूहा।
जमाना लागय न अमूहा।
एक पाना होय गय न अमूहा न।
फूलन लागय न अमूहा।
पाकन लागय न अमूहा।
पाकन लागय न अमूहा।
तोरन लागय न अमूहा न।
काही काटाबो न अमूहा।
काही काटाबो न अमूहा।
काही काटाबो न अमूहा।
हासिया काटाबो न अमूहा न।
खावन लागे न अमूहा।
खावन लागे न अमूहा।
कैसन लागे न अमूहा न।
मीठ-मीठ लागे न अमूहा।
मीठ-मीठ लागे न अमूहा।
बैगा सा लागे न अमूहा।

शब्दार्थ – बोपय=बोया, अमूहा=आम, पान=पत्ता, फूलन=फूलने फलने लगा, पाकन=पकने लगा, मीठे=मीठा।

बैगिन लड़की कहती है- यह आम किसने बोया है, उगाया है। बैगा लड़का कहता है- यह आम बैगिन लड़की ने बोया है और उगाया है। अब आम के पेड़ की जड़े जमीन में गढ़ गई हैं। और धीरे-धीरे बढ्ने लगा है। आम के पौधे पर पहले एक पत्ता निकला, दूसरा निकला, फिर तीसरा निकला। इस तरह कई पत्ते निकले। फिर आम पर ‘बौर’ यानि फूल आये और बाद में फल लगे। आम पर फल लद गये तो वे पकने लगे। आम पाक गये तो बैगा लड़के पके आम तोड़कर खाने लगे।

बैगा लड़की कहती है- आम के पेड़ से पके आम फल कैसे तोड़ेंगे? तब बैगा लड़का कहता है- हसिया से सारे आम काटेंगे या बेड़ेंगे। जब लड़की आम खाने लगी तो लड़के ने पूछा- तुझे आम कैसा लगा। लड़की कहती है- आम बहुत मीठे लगे। तब बैगा लड़का कहता है- तुम मुझसे विवाह करोगी तो जीवन भर ऐसे ही मीठे-मीठे आम खिलाऊँगा। आम के पेड़ उगने और आम के मीठे फल के बहाने बैगा लड़के-लड़की के जवान होने और दोनों के मन में प्रेम अंकुरण को समझा जा सकता है।