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अमृत घूँट / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

1.
कोसते रहे
समूची सभ्यता को
बेचारे भ्रूण

2.
 दौड़ाती रही
आशाओं की कस्तूरी
जीवन भर

3.
 नयी भोर ने
फडफढ़ाये पंख
जागीं आशाएं

4.
प्रेम देकर
उसने पिला दिए
अमृत घूँट

5.
थका किसान
उतर आई साँझ
सहारा देने

6.
किसे पुकारें
मायावी जगत में
बौराये लोग
7.
बनाता रहा
बहुत सी दीवारें
वैरी समाज

8.
दम्भी आंधियां
गिरा गयीं दरख़्त
घास को नहीं

9.
ढूँढते मोती
किनारे बैठ कर
सहमे लोग

10.
इन्द्रधनुष
सुसज्जित गगन
मोहित धरा