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अमृत -चुम्बन / कविता भट्ट


बरखा- सी माँ !
जीवन- तल पर
नित बरसी
बिन अपेक्षा के ही,
सदैव तूने
शांत किए संताप
जो थे अपने
पलकों के सपने
उनींदी मुझे
सब छोड़ ही गए,
थे संग मेरे
तेरे अमृत -चुम्बन
पीकर सुधा
तेरे स्नेह की सदा
हो गई मैं अजर ।