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अम्बर से टूटा तारा है / सुरेखा कादियान ‘सृजना’

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अम्बर से टूटा तारा है
आख़िर क्यूँ जीवन हारा है

लौट गयी हूँ जन्मों पीछे
ये किसने नाम पुकारा है

पहले उतरा वो साँसों में
फिर सोच-समझ के मारा है

आईने में देखा ख़ुद को
यूँ तेरा अक्स निहारा है

बीच समंदर छोड़ गया वो
क्या खूब भँवर से तारा है

मुझको बांधे रस्मों में दिल
फिर रहता ख़ुद आवारा है

सागर सा गहरा है जानां
ये इश्क़ तभी तो खारा है