Last modified on 29 अप्रैल 2019, at 20:39

अम्बेडकरी चादर / अनिता भारती

भूख प्यास और दुख में
सर्दी, गर्मी, बरसात में
ज़मीन पर, कुर्सी पर
तुमने जी भर ओढ़ा, बिछाया, लपेटा
अम्बेडकरी चादर को

फिर तह कर चादर
रख दी तिलक पर
और तिलक धारियों के साथ सुर मिलाया
हे राम ! वाह राम !

तुमने छाती से लगाई तलवार
और तराजू बन गया तुम्हारा ताज
पर जूता !

जूता तो पैरो में ही रहा
समझौते की ज़मीन पर चलते-चलते
कराह उठा, चरमरा उठा
हो गए है उसकी तली में
अनगिनत छेद

उन छेदों से छाले
पैरो में नहीं
छाती पर ज़ख़्म बनाते है
और लहूलुहान पैर नही
जूतों की जमातें हैं