Last modified on 16 फ़रवरी 2017, at 11:20

अम्माँ को क्या सूझी / रमेश तैलंग

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:20, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अम्माँ को क्या सूझी
मुझको कच्ची नींद सुलाकर,
बैठ गई हैं धूप सेंकने
ऊपर छत पर जाकर।

जाग गया हूँ मैं, अब कैसे
खबर उन्हें पहुँचाऊँ?
अम्माँ! अम्माँ! कहकर उनको
कितनी बार बुलाऊँ?

पाँव अभी हैं छोटे मेरे,
डगमग-डगमग करते,
गिरने लगता हूँ मैं नीचे
थोड़ा-सा ही चलते।

कैसे चढ़ पाऊँगा मैं अब
इतना ऊँचा जीना?
सोच-सोचकर मुुझे अभी से
है आ रहा है पसीना।