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अम्मा रहतीं गाँव में (कविता) / प्रदीप शुक्ल

छुटका रहता
है विदेश में
मँझला बहू के पाँव में
बड़का रहता रजधानी में
अम्मा रहतीं गाँव में

तीन बरस से
छुटका बाहर
होली ना दीवाली
देख नहीं पाई अम्मा
अब तक उसकी घरवाली

गाय के नन्हे बछड़े को
अम्मा दुलरातीं छाँव में
अम्मा रहतीं गाँव में

मँझला कहता
खेती में,
कुछ होता नहीं है अम्मा
उस पर तेरे खाने कपड़े का
मुझ पर ही जिम्मा

छुपा छुपा कर रखें पिटरिया
मँझला रहता दाँव में
अम्मा रहतीं गाँव में

पिछले हफ्ते
गयीं थीं अम्मा
बड़के की रजधानी
नहीं बताना चाहें लेकिन
वहाँ की कोई कहानी

अम्मा वापस लौट चली हैं
फिर से अपने ठाँव में
अम्मा रहतीं गाँव में