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अम्मा / राम सेंगर

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जीने की जिदज़िद-सी है आई
अम्मा लेश नहीं डरती है।
 है तहजीब तहज़ीब बदल की कैसीकहते-कहते फट-सी पड़ती
घटनाओं की लिए थरथरी
पीछे लौटे-आगे बढ़ती 
दिनचर्या पर चीलें उड़तीं
झोंक स्वयं को कठिन समय में
लड़ने का वह दम भरती है।है । 
चौलँग तमक अराजकता की
कुछ भी करो, खौफ ख़ौफ़ काहे का
इस दर्शन ने रह-रह तोड़ा
नर-नारी का अकलुष एका कामुक, - क्रूर, नजर - नज़र की कुंठाकुण्ठाचीरेगा अब यही त्रियाधनत्रिया-धनहाथ होंस का सिर धरती है।है । आहत हैं, स्वर-मूल्य-भावनातो भी हम में हममें समझ जगाए
मुर्दा तंत्र, समाज निकम्मा
असुरक्षा पर होंठ चबाए है महफूज महफूज़ न औरत कोई
शहतूती विधान को लेकर
प्रबल विरोध खड़ा करती हैंहै । अम्मा लेश नहीं डरती हैं।है ।
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