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अयलै’समय ई कठिन दुरजरूआ / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

अयलै’ समय ई कठिन दुरजरूआ
बचतै’ न एहि बेर लाज,
हे बाबा! बैसल झखै’ छै’ समाज।
कखनहु कऽ उमडै़’ सघन घन करिया,
उघने फिरै, पवन सन भरिया,
सरिया कऽ चाहै’ डुबादी ई दुनिया,
करतै’ तखन की स्वराज,
हे बाबा! बैसल झखै’ छै’ समाज।
बहुतो पड़ल जे करत सरकारे,
कोखो प्रकारे ने पारे उतारै,
ने बीचे मे बूडै’ जहाज,
हे बाबा ! बैसल झखै’ छै समाज।