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"अयोध्या-3 / सुशीला पुरी" के अवतरणों में अंतर

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11:28, 23 जून 2010 के समय का अवतरण

गूंगी अयोध्या
टूटते हैं मंदिर यहाँ
टूटती हैं मस्जिद यहाँ
टूट कर बिखर जाते हैं
अजान के स्वर
चूर-चूर हो जाती है
घंटियों की स्वरलहरियाँ
 
कोई नहीं बचाता यहाँ
सरगमों के स्वर
कोई नहीं पोछता
सरयू के आँसू
उसके लहरों की उदास कम्पन

अक्सर भटकती है सरयू
खोजते हुए
सीता की कल-कल हँसी ।