भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरी चल दूल्हे देखन जाय / नंददास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अरी चल दूल्हे देखन जाय ।
सुंदर श्याम माधुरी मूरत अँखिया निरख सिराय ॥१॥
जुर आई ब्रज नार नवेली मोहन दिस मुसकाय ।
मोर बन्यो सिर कानन कुंडल बरबट मुख ही सुहाय ॥२॥
पहरे बसन जरकसी भूषन अंग अंग सुखकाय ।
केसी ये बनी बरात छबीली जगमग चुचाय ॥३॥
गोप सबा सरवर में फूले कमल परम लपटाय ।
नंददास गोपिन के दृग अलि लपटन को अकुलाय ॥४॥