Last modified on 16 मार्च 2019, at 09:51

अरे! जैसे कोई छोटा बच्चा / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

('स्कुलब्वॉय लिरिक्स' नामक किपलिंग के पहले काव्य-संग्रह से..)

अरे! जैसे कोई छोटा बच्चा
देखता है अपनी खिड़की से एक बड़े से कस्बे पर
देखता है वे छतें जहाँ तक निगाहें पहुँचती हैं उसकी
लेकिन नहीं सोचता, जानता नहीं― इतना ही नहीं, विश्वास नहीं करेगा
कि वहाँ हैं कितने ही पिता, माता, बहनें, घर
ठीक उसकी तरह, हज़ारों घरेलू बातें, तौर-तरीके और परंपरायें―
इसी तरह मैंने देखा संसार अपने लाखों भाइयों के साथ. फिर मैंने लिखा;
और मेरी पूरी रचना बिल्कुल सुलगती नई उपज थी एक दिमाग की
जो प्रेम और भरोसा करता था इसमें.
पर ये संसार, उदासीन सा, चुपचाप मुझ से गुज़र गया
लिहाज़ा मैंने क्रोध में गाया!
जब गुज़रते बरस अपने साथ लाये ठंडगी, बड़ी देर में मैंने पाया
कि यहाँ थे दसों हज़ार, हज़ारों विचार मेरी तरह के..