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अरे अरे सखी बार बार छि छि / काजी नज़रुल इस्लाम

अरे अरे सखी बार बार छि छि
ठारत चंचल अँखिया साँवलिया।
दुरु दुरु गुरु गुरु काँपते हिया ऊरु
हाथ से गिर जाए कुमकुम थालिया।।
आर न होरी खेलबो गोरी
आबीर फाग दे पानी में डारी हा प्यारी---
श्याम कि फागुआ लाल की लगुआ
छि छि मोरी शरम धरम सब हारी
मारे छातिया मे कुमकुम बे-शरम बानिया।।