भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरे बरसन लागे बुंदिया चला भागा पिया / खड़ी बोली

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 23 जुलाई 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अरे बरसन लागे बुंदिया चला भागा पिया,

अरे घूंघटा भीगे तो भिजन दे अरे अंखिया ले चल बचाई पिया,

अरे नथ भीजे तो भीजन दे...अरे होंठवां ले चल बचाई पिया

अरे चोलीया भीजे तो भीजन दे अरे जुबना ले चल बचाइ पिया.

अरे लहंगा भीजे तो भीजन दे...अरे जंघिया ले चल बचाइ पिया