Last modified on 3 जून 2014, at 08:58

अरे मन-मधुप! छोड़ अज्ञान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:58, 3 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(राग काफी-तीन ताल)

अरे मन-मधुप! छोड़ अज्ञान।
पीता रह पवित्र प्रभु-पद-पंकज-मकरन्द महान॥
जगके विविध विषय, जिनमें रत रहता तू सुख मान।
क्षणभंगुर, अपूर्ण हैं सारे, अतिशय दुःख-निधान॥
भ्रमवश ही लगते प्रिय तुझको धन-यश, पूजन-मान।
हैं विषमय मीठे मोदक ये, हरें ज्ञान-विज्ञान॥
भोगोंकी सुन्दरता और मधुरता कृत्रिम जान।
भजता रह करुणा-वरुणालय नित निरुपम भगवान॥